जीवों का वर्गीकरण (वर्गिकी की परिभाषा, वर्गीकरण, इतिहास, जंतु जगत, पादप जगत, द्वीनाम पद्धति, ओवीपेरा, विविपेरा, पांच जगत वर्गीकरण)(definition of taxonomy, classification, history, animal kingdom, plant kingdom, binomial distribution
वर्गीकी (taxonomy)-
दोस्तों यह विज्ञान की एक शाखा है , जिसमें वर्गीकरण के सिद्धांतों एवं उसमें निहित प्रक्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
वर्गीकरण (classification) -
दोस्तों वर्गीकरण, विज्ञान की कोई शाखा नहीं है , बल्कि यह एक प्रक्रिया है , जिसमें जीवों (प्लांट और एनिमल दोनों) को उनमें समानता और असमानता के आधार पर वर्गीकृत (श्रेणीबद्ध) किया जाता है।
वर्गीकरण का इतिहास (history of classification)-
दोस्तों प्रारंभ में जीवों (पौधे एवं जंतु दोनों) को खाने योग्य और न खाने योग्य के आधार पर वर्गीकृत किया जाता था , किंतु वर्तमान में इसका कोई उपयोग नहीं।
इसके पश्चात प्रसिद्ध दार्शनिक अरस्तु ने थोड़ा व्यवस्थित रूप से वर्गीकरण का क्रम आरंभ किया था। इन्होंने ही सबसे पहले जंतुओं (पौधों का नहीं) को उनमें समानता और असमानता के आधार पर दो भागों में वर्गीकृत किया।
1. ऐनेइमा (Anaima)
2. इनेइमा (Enaima)
1. ऐनेइमा (Anaima) - दोस्तों इसमें अरस्तु ने रक्तविहीन (बिना रक्त वाले) जंतुओं को रखा था, उदाहरण - मोलस्का , स्पोंज आदि।
2. इनेइमा (Enaima) - दोस्तों इसमें अरस्तु ने रक्त (blood) वाले कशेरूकीय जंतुओं (chordates) को रखा था। इनेइमा को भी अरस्तू ने दो उपाभागो में विभाजित किया था -
a. ओविपेरा (ovipara)
b. विविपेरा (vivipara)
a. ओविपेरा (ovipara) - इसमें अण्डे देने वाले जंतुओं को रखा गया था , जैसे - पक्षी , छिपकली , मेंढक आदि।
b. विविपेरा (vivipara) - इसमें बच्चे देने वाले जंतुओं को रखा गया था , जैसे - गाय , मनुष्य आदि।
नोट: अरस्तु को जंतु विज्ञान का जनक कहा जाता। है।
इसके पश्चात वर्गीकरण के क्षेत्र में सबसे महत्त्वपूर्ण योगदान कैरोलस लिनियास नामक वैज्ञानिक ने दिया था।
कैरोलास लिनियस (Carolus Linnaeus) -
दोस्तों कैरोल्स लिनियस स्वीडिश वैज्ञानिक थे , जिन्होंने जीवधारियों (पौधें एवं जंतु दोनों) के आधुनिक वर्गीकरण में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाई । इन्होंने अपनी पुस्तक सिस्टोमा नेचुरी (Systema Naturae) में जीवधारियों को दो जगतों (kingdom) में विभाजित किया -
a. जंतु जगत (Animal kingdom)
b. पादप जगत (Plant kingdom)
इसी द्विजगत वर्गीकरण से आधुनिक वर्गीकरण प्रणाली की नींव पड़ी, इसी कारण कैरोलस लीनियस को आधुनिक वर्गीकरण का पिता या जनक (Father of modern taxonomy) कहा जाता है । दोस्तों कैरोलस लिनियस ने ही जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति (Binomus method) दी थी, जिसे इसी लेख / आर्टिकल में आगे समझाया जाएगा, क्योंकि द्विनाम पद्धति को समझने से पहले वंश और जाति क्या होती है ? यह जानना आवश्यक है।
नोट: कैरोलस लिनियस को फादर ऑफ एनिमल किंगडम (Father of animal kingdom)भी कहा जाता है।
दोस्तों कैरोलस लिनियस के बाद अर्नेस्ट हिकल ने जीवधारियों (पौधें एवं जंतु दोनों) दोनों को तीन जगतों में विभाजित किया -
a. जंतु जगत /animal kingdom
b. पादप जगत/plant kingdom
c. प्रोटिस्टा/protista
दोस्तों आगे बढ़ने से पहले जीवों के वर्गीकरण से संबंधित कुछ शब्दों को समझने का प्रयास करते है। दोस्तों वर्गीकरण में सबसे पहले जीवों को सबसे बड़े संवर्ग अर्थात् जगत (kingdom) में बांटा जाता है , उसके बाद उत्तरोत्तर छोटे-छोटे संवर्गो में बांटा जाता है। जीवों के वर्गीकरण में प्रयुक्त होने वाला सबसे छोटा संवर्ग जाति (species) होता है।
ये संवर्ग घटते क्रम में निम्नानुसार है -
1. जगत (Kingdom)
2. संघ (Phylum)
3. वर्ग (Class)
4. गण (Order)
5. कुल (family)
6. वंश (Genus)
7. जाति (Species)
1. जगत (Kingdom) - जीवों के वर्गीकरण की सबसे बड़ी इकाई या संवर्ग को जगत या किंगडम कहा जाता है। पृथ्वी पर पाए जाने वाले समस्त जीव धारियों को दो जगातों में विभाजित किया गया है - जंतु जगत (animal kingdom) एवं पादप जगत (plant kingdom)
2. संघ (Phylum) - एकसमान लक्षणों या विशेषता वाले वर्गों को एक ही संघ (फाइलम) में रखा जाता है, जैसे - मत्स्य वर्ग (Pisces), उभयचर वर्ग (Amphibian), सरीसृप वर्ग (Reptile), पक्षी वर्ग (Aves) और स्तनधारी वर्ग (mammals) को एक ही संघ कशेरुकी संघ (chordata phylum) में रखा गया है। दोस्तों इन्हें आगे विस्तार से समझाया जाएगा।
3. वर्ग (Class) - समान लक्षणों को दर्शाने वाले गणों का समूह वर्ग कहलाता है, जैसे - गोरिल्ला , मनुष्य , बंदर को प्राइमेट्स नामक गण में रखा गया है। इसी प्रकार कुत्ता , बिल्ली , भालू , शेर आदि को कोर्नीवोरा नामक गण में रखा गया है। प्राइमेट्स गण और कोर्नीवोर गण में स्तन पाए जाते है , इसलिए इन दोनों गणों को एक ही वर्ग स्तनधारी वर्ग (मैमल्स/mammals) में रखा गया है।
4. गण (Order) - घनिष्ठ समानता दर्शाने वाले कुलों को एक ही गण में रखा जाता है। Felidae या फेलिडी या Cat family (बिल्ली कुल) , Canidae या केनाइडी या dog family (कुत्ता कुल) और bear family (भालू कुल) को एक ही गण कोर्नीवोरा गण (Order cornivora) में रखा गया है।
5. कुल (family) - घनिष्ठ रूप से संबंध रखने वाले वंशो के समूह को कुल कहा जाता है, जैसे - सिंह , चीता , शेर , बाघ आदि सभी प्रकार की बिल्लियों को एक ही कुल felidae या फेलिडी या cat family में रखा गया है। इसी प्रकार सभी प्रकार के कुत्तों , लोमाडियों आदि को Canidae या dog family में रखा गया है।
नोट: पेंथरा और फेलिस (cat) दोनों वंश एक दुसरे से घनिष्ठ रूप से संबंध रखते है, इसलिए इन दिनों को एक ही family यानी कुल felidae में रखा गया है।
6. वंश (Genus) - एक दूसरे से समानता रखने वाली जातियों का समूह वंश कहलाता है, जैसे - a. शेर : पेंथरा लिओ , b. बाघ : पेंथरा टाइग्रिस , c. तेंदुआ : पेंथरा पार्डस।
दोस्तों शेर , बाघ तथा तेंदुआ एक दूसरे से घनिष्ठ संबंध रखते है , इसलिए ये एक ही वंश पेंथरा के है, किंतु इनकी जातियाँ अलग - अलग है तथा इनकी जातियाँ एक दूसरे से समानता रखती है।
7. जाति (Species) - वर्गीकरण की सबसे छोटी इकाई या संवर्ग जाति होती है। दोस्तों यह भी ध्यान रखें कि जीवों के वर्जीकरण की आधारभूत इकाई जाति ही होती है।
जाति (Species) किसे कहते है - ऐसे जीव (जंतु या पादप) ,जिनकी उत्पत्ति एक ही प्रकार के जनक (पैदा करने वाला जोड़ा) से होती है , वे सभी आपस में एक ही जाति के होते है। दूसरे शब्दों में कहें, तो दोस्तों एक ही जाति के जोवों में बाह्य रूप से काफ़ी समानता होती है तथा वे जनन कर नई संतान उत्पन्न कर सकते है।
चलिए दोस्तों अब हम जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति को समझते है। इसके बाद हम जीवों के पांच जगत वर्गीकरण के बारे में बात करेंगे।
जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति (Binomus method) -
दोस्तों विभिन्न देशों में अलग-अलग भाषाएं बोली जाती है और विभिन्न जीवों के नाम अलग-अलग देशों में अलग-अलग होते है। इसलिए विभिन्न देशों में किसी जीव को अलग-अलग नामों से जाना जाता है। इस कारण दोस्तों एक ही जीव के अनेक नाम होते है , किंतु वैश्विक स्तर पर किसी जीव को एक ही नाम से जानने की आवश्यकता होती है। इसी कारण दोस्तों किसी जीव को वैश्विक स्तर पर एक ही नाम से जाना जाए, इसलिए केरोलस लिनियस ने अठाहरवीं शताब्दी में जीवों के नामकरण की द्विनाम पद्धति का प्रतिपादन किया। इस पद्धति में किसी भी जीव का नाम लैटिन (Latin) भाषा के दो शब्दों से मिलकर बना होता है, जिसमें पहला शब्द वंश (genus) और दूसरा शब्द जाति (species) होता है।
पहला शब्द - वंश का नाम / Generic name
दूसरा शब्द - जाति का नाम / Species name
दोस्तों students हमेशा यह भूल जाते है, कि द्विनाम पद्धति में पहला शब्द कोनसा होता है। इसे याद रखने के लिए एक ट्रिक याद रखी जा सकती है। ट्रिक है - वजा। वजा में 'व' का अर्थ है - वंश और 'जा' का अर्थ है - जाति।
दोस्तों वंश और जाति के नाम के बाद उस वैज्ञानिक का नाम लिखा जाता है, जिसने उस जाति की खोज की या उसे नाम दिया है। दोस्तों चलिए हम इसे एक उदाहरण के माध्यम से समझने का प्रयास करे।
दोस्तों मानव का वैज्ञानिक नाम है - Homo sapiens Linn/ होमो सेपिएंस लिन। दोस्तों इस उदाहरण में Homo वंश/genus का नाम है तथा sapiens जाति/species का नाम है। अंत में जो लिन/Linn लिखा है वह केरोलस लिनियस का नाम है, क्योंकि लिनियस ने ही होमो सेपियंस नाम दिया था। दोस्तों इस पद्धति में जीवों के नामकरण के लिए निम्न बातों पर ध्यान दिया जाता है -
a. वंश/ginus के नाम का पहला पहला अक्षर या अल्फाबेट कैपिटल लेटर में लिखा जाता है।
b. जाति/species के नाम का पहला अक्षर स्मॉल लेटर लिखा जाता है।
c. छपे हुए रूप में वैज्ञानिक नाम इटैलिक (एक तरह का तिरछा टाइप, जैसे - Homo sapiens) में लिखे जाते है।
d. जब वैज्ञानिक नाम हाथों से लिखा जाता है, तो वंश और जाति के नामों को अलग-अलग रेखांकित (अंडरलाइन) किया जाता है।
दोस्तों अब यहां कुछ जीवों के महत्वपूर्ण वैज्ञानिक नाम दिए गए हैं जो आपकी एग्जाम की दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण है, इन्हें आप बार-बार पढ़कर याद रख सकते हैं, क्योंकि इन्हें एक बार में याद रखना आसान नहीं होता। अतः आप इन्हें निरंतर पढ़ते रहें, ताकि आपको ये सभी याद रहे।
मनुष्य (Man)- Homo sapiens
मेंढक (Frog)- Rana tigrina
बिल्ली (Cat)- Felis domestica
कुत्ता (Dog)- Canis familiaris
आम (Mango)- Mangifera indica
धान (Rice)- Oryza sativa
गेहूं (Wheat)- Triticum aestivum
चना (Gram)- Cicer arietinum
सरसों (Mustard)- Brassica campestris
गाय (Cow)- Bos indicus
मक्खी (Housefly)- Musca domestica
गधा (Donkey)- Equus asinus
घोड़ा (Horse)- Equus caballus
भेड़ (Sheep)- Ovis aries
दोस्तों इन परंपरागत वर्गीकरण पद्धतियों का स्थान आगे चलकर आर. एच. व्हिटेकर (R.H. Whittaker) द्वारा 1969 ई. में प्रस्तुत पांच जगत वर्गीकरण पद्धति ने लिया। दोस्तों आधुनिक जीव विज्ञान में सर्वाधिक मान्यता आर.एच. व्हिटेकर द्वारा प्रस्तुत इसी पांच जगत वर्गीकरण को दी जाती है। इन्होंने जीवों को जगत/किंगडम नामक 5 बड़े वर्गों में विभाजित किया, जो इस प्रकार है-
a. मोनेरा (Monera)
b. प्रोटिस्टा (Protista)
c. पादप (Plant)/Plantae
d. कवक (Fungi)
e. जंतु (Animal)/एनिमेलिया
a. मोनेरा (Monera) - दोस्तों इस जगत में एककोशिकीय (एक कोशिका वाले) प्रोकैरियोटिक जीवों को रखा गया है , अर्थात् - इन जीवों की कोशिकाओं में पूर्ण विकसित नाभिक नहीं पाया जाता है साथ ही इनमें पूर्ण विकसित कोशिकांग भी नहीं होते हैं। इस जगत के कुछ जीवो में कोशिका भित्ति पाई जाती है, जबकि कुछ में अनुपस्थित होती है। दोस्तों इनमें से कुछ जीव स्वपोषी होते हैं तथा कुछ विषमपोषी भी होते हैं। इस जगत के कुछ जीवो के उदाहरण निम्न है- जीवाणु (bacteria), नील हरित शैवल/ ब्लू ग्रीन एल्गी(साइनोबैक्टीरिया), एनाबिना, आर्की बैक्टीरिया, माइकोप्लाज्मा गैलिसेप्टिकम (PPLO- प्लूरो निमोनिया लाइक ऑर्गेनिज्म)।
दोस्तों तंतुमय जीवाणुओं को भी इसी में रखा जाता है।
नोट: माइकोप्लाज्मा को सूक्ष्म जीव विज्ञान का जोकर कहा जाता है।
नोट: दोस्तों प्रोकैरियोटिक में प्रो का अर्थ होता है- प्राचीन/पुराना तथा कैरियोट का अर्थ होता है- नाभिक। इस प्रकार प्रोकैरियोटिक का अर्थ है- ऐसा नाभिक जो पूर्ण रूप से विकसित नहीं है।
b. प्रोटिस्टा (Protista) - दोस्तों इस जगत में एककोशिकीय यूकैरियोटिक जीवो को रखा जाता है। इस जगत के कुछ जंतुओं में सिलिया(छोटे तंतु), फ्लैजेला(ये भी तंतु ही है, जो लंबे होते है) नामक संरचनाएं पाई जाती है, जिनका उपयोग विचरण अर्थात् गमन (चलने-फिरने) के लिए करते है। यह भी स्वपोषी एवं विषमपोषी/इतरपोषी/परपोषी दोनों प्रकार के होते है। इस जगत के जीवों के उदाहरण निम्न है - एककोशिकीय शैवाल, डायटम, प्रोटोजोआ, यूग्लीना, पैरामीशियम, अमीबा आदि।
नोट: दोस्तों यूकैरियोटिक का अर्थ होता है- जिसमें स्पष्ट और विकसित नाभिक पाया जाता है।
नोटो: यूग्लीना को पादप और जंतु के बीच की कड़ी माना जाता है। यह सूर्य के प्रकाश में स्वपोषी व प्रकाश के अभाव में विषमपोषी होता है। इसलिए यूग्लीना को हरा प्रोटोजोआ भी कहा जाता है।
c. पादप (Plantae) - दोस्तों इस जगत में कोशिका भित्ति (सेल वॉल/cell wall) वाले बहुकोशिकीय यूकैरियोटिक जीवो को रखा जाता है। इसके सभी जीव स्वपोषी होते हैं। इनमें प्रकाश संश्लेषण के लिए क्लोरोफिल नामक वर्णक पाया जाता है। इस जगत के जीवों के उदाहरण - पुष्पीय पौधे (Phanerogams) तथा अपुष्पीय पौधे (Cryptogams)। दोस्तों इन्हें आगे पादप वर्गीकरण के दौरान समझाया जाएगा। इसलिए यहां इनके बारे में ज्यादा बात नहीं की जा रही है। हालांकि एनसीईआरटी/NCERT में इनका वर्णन यहीं किया गया है।
d. कवक (Fungi) - इस जगत के अंतर्गत कोशिका भित्ति वाले यूकैरियोटिक विषमपोषी जीवों को रखा गया है, जो अवशोषण द्वारा भोजन (पोषण) प्राप्त करते हैं तथा पोषण के लिए सड़े गले कार्बनिक पदार्थो (जैसे- सब्जियों , फलों के अवशिष्ट भाग आदि) पर निर्भर रहते है। इन जीवों की कोशिका भित्ति काइटिन (जटिल शर्करा / कार्बोहाइड्रेट) की बनी होती है। उदाहरण - यीस्ट, मशरूम, एस्पार्जिलस, पेनिसीलियम, एगेरिकस आदि।
e. जंतु (Animal) - दोस्तों इस जगत में यूकैरियोटिक, बहुकोशिकीय और विषमपोषी जीवों को रखा गया है। इन जीवों की कोशिका में कोशिका भित्ति नहीं पाई जाती है। इस जगत के जीव सामान्यतः चलायमान (चल - फिर सकते है) होते हैं। शारीरिक संरचना एवं विभेदीकरण के आधार पर भी इन्हें आगे कई भागों में वर्गीकृत किया गया है, जो निम्न प्रकार है-
1. पोरिफेरा/Porifera
2. सिलेंट्रेटा/Coelentrata
3. प्लेटीहेल्मिन्थीस/Platyhelminthes
4. ऐस्केहेल्मिनथीस/Ascheleminthes या निमेटोडा/Nimetoda
5. एनीलिडा/Annelida
6. आर्थोपोडा/Arthropoda
7. मोलस्का/Mollusca
8. इकाइनोडर्मेटा/Echinodermata
9. प्रोटोकॉर्डेटा/Protochordata
10. कशेरुकी/कोर्डेटा/ Chordata/ chordex/vertebrates - इसे 5 वर्गों में बांटा गया है -
10.1. मत्स्य वर्ग (Pisces)
10.2. उभयचर वर्ग (Amphibian)
10.3. सरीसृप वर्ग (Reptile)
10.4. पक्षी वर्ग (Aves)
10.5. स्तनधारी वर्ग (mammals)
दोस्तों अभी यहां इन सभी को विस्तृत रूप से नहीं समझाया जा रहा है। इन्हें आगे विस्तृत रूप से समझाया जाएगा। दोस्तों कशेरुक दंड के आधार पर भी जीवों का वर्गीकरण किया गया है जिसमें इन सभी की विस्तृत रूप से चर्चा की जाएगी।
इस प्रकार दोस्तों वीटकर द्वारा प्रस्तुत पांच जगत वर्गीकरण को हमने भली-भांति समझा है। दोस्तों इस पांच जगत वर्गीकरण को नीचे दिए गए चित्र/आरेख के माध्यम से अच्छी तरीके से समझा जा सकता है-
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें